Monday, September 23, 2019

ललितादित्य मुक्तापीड कश्मीर का वह राजा जिसने अरबी और तुर्क आक्रमणकारियों को छटी की दूध याद दिलाया था

ललितादित्य मुक्तापीड कश्मीर का वह राजा जिसने अरबी और तुर्क आक्रमणकारियों को छटी की दूध याद दिलाया था। भूला बिसरा भारत का महानायक जिसके बारे में इतिहास नहीं लिखा गया। इनको ‘भारत का सिकंदर’ भी कहा जाता है।

ललितादित्य मुक्तापीड (राज्यकाल 724-761 ई) कश्मीर के कर्कोटा वंश के हिन्दू सम्राट थे। उनकी पराक्रम की गाथा हम क्या गाये? कि उन्होंने अरब के इस्लामी आक्रांताओं और तुर्क आक्रमणकारियों को भारत की भूमी में पांव तक नहीं रखने दिया था। उन्होंने लद्दाख और बाल्टिस्तान से टिब्बतिय राजाओं को भी खदेड़ भगाया था। कल्हण की ‘राजतरंगिनी’ में आठवीं शाताब्दी के महानायक ललतादित्य मुक्तापीड के पराक्रम का बखान किया गया है। ललितादित्य ने कश्मीर के कर्कॊटा साम्राज्य पर लगभग 36 वर्ष 7 महीने 11 दिन शासन किया था।


ललितादित्य के काल में कश्मीर के कर्कॊटा साम्राज्य का विस्तार मध्य एशिया से बंगाल तक फैला हुआ था। उनका साम्राज्‍य पूर्व में बंगाल तक, दक्षिण में कोंकण तक पश्चिम में तुर्किस्‍तान और उत्‍तर-पूर्व में तिब्‍बत तक फैला हुआ था। कश्मीर में अनेक मंदिर बनाने वाले साम्राट थे ललितादित्य। कश्मीर का मार्ताण्ड मंदिर इन्ही के द्वारा बनाया गया था।


पुराणॊं में उल्लेख किया गया नाग वंश जिनके पूर्वज महर्षी कश्यप थे इसी नाग जनांग से संबंध रकहते थे कार्कॊट नाग। कार्कॊट नाग का उल्लेख नल-दमयंती कहानी में है। इसी कार्कॊट नाग के वंशज थे ललितादित्य मुक्तापीड। नाग जनांग युद्ध लड़ने वाला असीम बलशाली समुदाया था जिसने भाषा को लिपि देने में भी अपनी बहुत बड़ी भूमिका निभाई थी। अपने क्षात्र गुण के कारण ललितादित्य भी बलशाली थे।

साहस और पराक्रम की प्रतिमूर्ति सम्राट ललितादित्य मुक्तापीड का नाम कश्मीर के इतिहास में सर्वोच्च स्थान पर है। प्रकरसेन नगर उनके साम्रज्य की राजधानी थी। लगातार बिना थके युद्ध में व्यस्त रहना और रणक्षेत्र में अपने अनूठे सैन्य कौशल से विजय प्राप्त करना उनकी बहुत बड़ी उपलब्दी थी। उनके पास विशाल मजबूत और अनुशासित सेना थी जिसके वजह से वे अरबी और तुर्क आक्रमण्कारियों क्को छटी की दूध याद दिलाते थे।


कश्मीर ही नहीं बल्की चीन व तिबतियन इतिहास में भी ललितादित्य के पराक्रम के किस्से दर्ज हैं। कल्हण की राजतरंगिणी में लिखा गया है कि ललितादित्य विजय दिवस को कश्मीर के लोग हर साल मनाते थे। अल्बरूनि ने भी इस बात का उल्लेख किया है कि कश्मीरी लोग द्वितीय चैत्र के दिन ललितादित्य के विजय के रूप में मनाते थे। वो ललितादित्य ही थे जिन्होंने अरब आक्रांतारॊ को सिंध के आगे बढ़ने से रॊक रखा था।


ललितादित्य का विजय अभियान रुकने का नाम ही नहीं ले रहा था। माना जाता है कि ऐसे हि एक अभियान के दौरान उनकी मृत्यू हुई थी। कुछ लोगों का कहना है कि अफघानिस्तान अभियान के दौरान हिमस्खलन के नीचे दब जाने के कारण उनकी मृत्यू हुई थी। वहीं कुछ और लोगों का कहना है कि वे सेना से बिछड़ गये थे और खुद को मुघलों के हाथ लगने से बचाने के लिए उन्होंने खुद आत्म समर्पण कर लिया।

ललितादित्य ना केवल एक साहसी यॊद्धा थे बल्की चित्रकला और शिल्पकला के भी आराधक थे। उनके शासन काल में अध्बुत वास्तुकला के मंदिर बनवाये गये। अपने साम्राज्य के नागरिकों को वे बहुत प्रेम से देखा करते थे और कृषी को अधिक महत्व दिया करते थे। भारत के तीन सूर्य मंदिरों में से एक मार्ताण्ड मंदिर है जिसे ललितादित्य ने बनवाया था।

1) सन 739 (ईस्वी) में लड़ें गये सबसे लम्बा युद्ध था जिसे “Battle Of Caucasus” कॉकस या कौकसस जो की स्पेन का राजधानी थी प्राचीनकाल में जहाँ सम्राट ललितादित्य ने थियोडोरिक प्रथम को परास्त कर ललितादित्य ने कॉकस या कौकसस , स्पेन, दमास्कस पर भगवा परचम लहराया था । इस तरह से सम्राट ललितादित्य कर्कोटक ने लगातार 18 युद्ध लड़े थे बाल्टी साम्राज्य, थियोडोसियाँ साम्राज्य, के साथ । सम्राट ललितादित्य से युद्ध में परास्त होने के बाद यवनों ने सम्राट ललितादित्य के साथ संधि कर स्पेन साम्राज्य अरब , सीसिली (sicily),मेसोपोटामिया, ग्रेटर अर्मेनिआ, कैरौअन (Kairouan) (वर्तमान में इसे तुनिशिया देश के नाम से जाने जाते हैं ) तुर्क , कजाखस्तान , मोरक्को , अफ्रीका , पर्शिया एवं अनेक देश सामिल थे ये 72 प्रतिशत यवन साम्राज्य का भूभाग एवं पूरी अरब सागर , तिग्रिस , नील नदी पर सम्राट ललितादित्य ने भगवा ध्वज लहराया था।

2) सन 752 (ईस्वी) पूर्वी यूरोप विजय करने निकले थे रणक्षेत्र में अपने अनूठे सैन्य कौशल से विजय प्राप्त किया बाईज़न्टाइन साम्राज्य के राजा व्हॅलेंटिनियन तृतीय के साथ युद्ध की व्याखान मिलता हैं इन्हें हराकर सम्राट ललितादित्य ने क़ुस्तुंतुनिया, रूस पर कब्ज़ा किया आठवी सदी तक क़ुस्तुंतुनिया (कोंस्तान्तिनोपाल) राजधानी था यूरोप का । इसके उपरांत डुक पोलिश राजा को परास्त कर पोलिश (पोलैंड) विजय कर भगवा झंडा लहरा था । सम्राट ललितादित्य ने रूस के साथ साथ बॉस्निया के अधीन अन्य यूरोपी देशो को अपने विजय अभियान में सम्मिलित कर साम्राज्य को यूरोप तक फैलाया था एवं इसके उपरांत सम्राट ललितादित्य मुक्तापिड़ ने पश्चिम और दक्षिण में क्रोएशिया पूर्व में सर्बिया और दक्षिण में मोंटेनेग्रो उत्तरपूर्वी यूरोप अल्बानिया उत्तर में कोसोवो पूर्व में भूतपूर्व यूगोस्लाविया और दक्षिण में यूनान तक सफलतापूर्वक सैन्य अभियान कर विश्व विजयता की उपाधि हासिल कर लिया था ।

ललितादित्य विश्व विजयी होकर लगभग 12 वर्ष के पश्चात् कश्मीर लौटा एवं तीन साल बाद अंतिम सांस लिया कश्मीर में ।
अंततः इनके शौर्य और पराक्रम को भूलने का नतीजा हुआ कश्मीर में आज एक भी कश्मीरी हिन्दू कश्मीर में नहीं रह पाए अगर कश्मीरी हिन्दू अपने पूर्वज को एक बार के लिए पढ़ लिए आज यह दुर्दशा नहीं होता कश्मीरी पंडितो का होकर रहता कश्मीर ।

इन्होंने भारतवर्ष में घुसने का प्रयास करने वाले हमलावरों को भी खदेड़ा था भारत से और इतिहासकार आरसी मजूमदार के अनुसार ललितादित्य की सेना की पदचाप अरबो का पीछा करती हुई अरण्यक (ईरान) तक पहुंच गई थी।

कश्मीर के इस नागवंशी राजपूत कर्कोटक शाखा (टाक) महान राजा के बारे में अधिकांश लोगो को जानकारी ही नही है ।
न्यूज़ चैनलो पर डिबेट में पीडीपी के प्रवक्ता फ़िरदौस टाक जब घाटी में इस्लामिक विचारधारा का बचाव करते हैं और दबे शब्दों में आतंकी घटनाओ का भी समर्थन करते हैं तो उन्हें शायद अपने यशस्वी पूर्वज ललितादित्य मुक्तपीड की कीर्ति का तनिक भी भान न होगा !!!!!!

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