क्वैराल की सब्जी से दूर होता है बवासीर
पर्वतीय अंचल में करीब तीन हजार मीटर तक की ऊंचाई पर मिलने वाले क्वैराल में कई गुण हैं। इसके पत्ती, फूल, तना, जड़ सभी का भेषज के रूप में उपयोग होता है। क्वैराल को संस्कृत में कचनार कहते हैं। रामायण, महाभारत काल में इसको कोविदार नाम दिया गया था। इसका वानस्पतिक नाम वर्जिगेटा भूनिया है। क्वैराल के फूलों की सब्जी खाने से बवासीर की बीमारी ठीक हो जाती है। यह पेट के रोगों की रामवाण दवा है। क्वैराल पुष्प प्रजाति की जड़ीबूटी है। इसके पेड़ की जड़ों का सांप का जहर दूर करने में भी प्रयोग होता रहा है। क्वैराल का पेड़ करीब दस से 15 फिट तक ऊंचा होता है। इसमें गर्मी के सीजन में फूल लगते हैं। क्वैराल की पत्तियों का जानवरों के लिए चारा बनता है। गांवों में लोग आज भी क्वैराल की कलियों से लोग रायता बनाते हैं। इनको सुखाकर रखते हैं। ताकि बेमौसम इनका उपयोग किया जा सके। आयुर्वेद चिकित्सक एमडी डा. नवीन जोशी ने बताया कि क्वैराल के पेड़ का हर हिस्सा काम आता है। वह कहते हैं इसके संरक्षण का प्रयास किया जाना चाहिए। पौधरोपण अभियान के समय क्वैराल को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।कालमेघ करे बुखार को ढेर, छुईमुई से बवासीर छूमंतर
छुईमुई के पौधे को छुआ जाए, तो यह मुरझा जाता है, इसके चलते झाड़ी प्रजाति (शर्ब) के इस पौधे को नाजुक मिजाज माना जाता है। पर यह है बड़ा करामाती। यह बवासीर रोग को खत्म करने में कारगर है। इसी तरह कालमेघ पौधे भी बुखार को तोड़ने में कारगर है। यह पौधे हमारे आसपास होते हैं, पर इनके बारे में आम लोगों के अलावा कई बार वन कर्मियों को भी जानकारी नहीं होती है। अब जंगलात पौधों के बारे में वन कर्मियों को भी रूबरू कराने से लेकर नर्सरियों में लगाना शुरू किया है।बीमारी दूर करने में कई घरेलू नुस्खे हुआ करते थे। इसमें से कई औषधियां घर और आसपास के क्षेत्र में होती थी, जिसका इस्तेमाल लोग इलाज में करते थे। धीरे-धीरे इसका चलन कम होने लगा। कई बार वन कर्मी भी इनकी पहचान नहीं कर पाते हैं। इसको देखते हुए वन महकमे ने नर्सरियों में पौधों के रोपण का काम शुरू किया है, जिससे वन कर्मियों के साथ विद्यार्थियों को भी इनसे रूबरू कराया जा सके।
एफटीआई स्थित नर्सरी में कई शर्ब और हर्ब प्रजाति के पौधों को लगाया गया है। इसमें से एक काला मेघ है, जिसके बारे में वनाधिकारियों का दावा है कि वह पुराने से पुराने बुखार को दूर करने में कारगर है। इसी तरह दारू हल्दी भी लगाई गई है। जो निद्रा रोग को झटपट गायब कर देती है। यह मधुमेह नियंत्रण में भी कारगर होती है। पुनर्नवा में नया जीवन देने का गुण है, नर्सरी प्रभारी मदन बिष्ट कहते हैं कि इसके सेवन से व्यक्ति का जीवन नया जैसा हो जाता है। यह हृदय और स्त्री रोग में बेहद सटीक तरह से काम करती है। इसमें पत्ती, जड़ आदि का इस्तेमाल किया जाता है।
कचनार के फूल से भगाएं बवासीर और थायराइड
कचनार का फूल जितना खूबसूरत होता है उतना ही यह सेहत के लिए भी गुणकारी होता है। मुंह में छाले आ गए हों या पेट में कीड़े हो गए हों, कचनार का फूल हर सूरत में कारगर उपचार है।पीले कचनार के छाल को पानी में उबालकर ठंडा कर लें। दो से तीन दिन इसका सेवन करने से पेट के कीड़े मर जाएंगे और छाला समाप्त हो जाएगा। कचनार की कलियों को सूखाकर उसका पाउडर बनालें और मक्खन के साथ 11 दिनों तक सेवन करें तो खूनी बवासीर से राहत मिलता है।
थायराइड की समस्या से पीड़ित लोगों के लिए भी कचनार का फूल बहुत ही गुणकारी है। इस समस्या से पीड़ित व्यक्ति लगातार दो महीने तक कचनार के फूलों की सब्जी अथवा पकौड़ी बनाकर खाएं तो उन्हें आराम मिलता है।
मुंहासे से लेकर गैस्ट्रिक दूर भगाने तक, जानें जायफल के फायदे
जायफल कई बीमारियों में काम आता है। इसका इस्तेमाल कई तरह के घरेलू उपचार में भी कर सकते हैं।जायफल को कच्चे दूध में घिसकर चेहरें पर सुबह और रात में लगाएं। मुंहासे ठीक हो जाएंगे और चेहरे निखारेगा।
जायफल बहुत ही थोड़ी मात्रा में गरम मसाले में प्रयोग किया जाने वाला एक मसाला है। इसके औषधीय गुण भी कम नहीं हैं। भूख नहीं लगती हो, तो चुटकी भर जायफल की कतरन चूसकर देखें, कुछ ही देर में आराम मिलेगा। इससे पाचक रसों की वृद्धि होगी, भूख बढ़ेगी और खाना भी ठीक से पचेगा।
जायफल, सौंठ और जीरे को पीसकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को भोजन करने से पहले पानी के साथ लें। गैस और अफारा की परेशानी नहीं होगी। पेट में दर्द हो तो जायफल के तेल की 2-3 बूंदें एक बताशे में टपकाएं और खा लें। जल्द ही आराम आ जाएगा।
प्रसव के समय होने वाले दर्द से छुटकारा पाने के लिए जायफल को पानी में घिसकर, इसका लेप कमर पर करें, लाभ मिलेगा। दस जायफल लेकर देशी घी में अच्छी तरह सेंके और पीसकर छान लें। इसमें दो कप गेहूं का आटा मिलाकर घी में फिर सेकें। इसमें शक्कर मिलाकर रख लें। रोजाना सुबह खाली पेट इस मिश्रण को एक चम्मच खाएं, बवासीर से छुटकारा मिल जाएगा।
जायफल के चूर्ण को शहद के साथ खाने से हृदय मजबूत होता है। जायफल को पानी में पकाकर उस पानी से गरारे करें। मुंह के छाले ठीक होंगे, गले की सूजन भी जाती रहेगी। दांत में दर्द होने पर जायफल का तेल रुई पर लगाकर दर्द वाले दांत या दाढ़ पर रखें, दर्द तुरंत ठीक हो जाएगा। अगर दांत में कीड़े लगे हैं तो वे भी मर जाएंगे।
सरसों का तेल और जायफल का तेल एक निश्चित अनुपात में मिलाकर रख लें। इस तेल से दिन में 2-3 बार शरीर की मालिश करें। जोड़ों का दर्द, सूजन, मोच आदि में राहत मिलेगी।
एक चुटकी जायफल पाउडर दूध में मिलाकर लेने से सर्दी का असर ठीक हो जाता है। फटी एड़ियों में जायफल को घिसकर बिवाइयों में लगाने से फायदा होता है। नीबू के रस में जायफल घिसकर सुबह-शाम भोजन के बाद सेवन करने से गैस और कब्ज की तकलीफ भी दूर होती है।
विदेशों तक भी पहुंची कासनी की गंध
ब्लड प्रेशर, शुगर जैसे रोगियों के लिए कारगर कासनी की गंध ने अमेरिका, नार्वे, बेल्जियम के लोगों को भी दीवाना बना दिया है। वह मुख्य वन संरक्षक के कार्यालय फोन कर इस पौध की बाबत दरियाफ्त कर रहे हैं। बरेली, बनारस समेत देश के दूसरे हिस्सों से तो लोग इसे लेने आ ही रहे हैं। आलम यह है कि 5 हजार पौधे जंगलात महकमा बांट चुका है। अब 12 हजार पौधे और तैयार कराए जा रहे हैं, ताकि बढ़ती डिमांड से निपटा जा सके।
लाइफ स्टाइल, खानपान में बदलाव के कारण शुगर, ब्लड प्रेशर जैसे कई रोगों के लोग शिकार हो रहे हैं। किडनी और लीवर के रोगियों की संख्या भी लगातार बढ़ रही है। इन रोगों से निपटने के लिए आमतौर पर अंग्रेजी दवा खाना पड़ती है, पर अब लोगों का रुझान आयुर्वेद से जुड़ी पुरानी पद्धतियों की तरफ हो रहा है। वन विभाग के अनुसंधान शाखा ने जो कासनी के पौधे विकसित किए हैं, विभाग का दावा है कि लोगों को इनके इस्तेमाल से फायदा हुआ है, लिहाजा इनकी मांग बढ़ गई है। मुख्य वन संरक्षक एसके सिंह मांग को देखते हुए ही नए सिरे से पौधे तैयार किए जा रहे हैं।
अनुभव किए जा रहे रिकार्ड
अनुसंधान प्रभारी मदन बिष्ट कहते हैं कि जिन लोगों को बीमारी में कासनी के इस्तेमाल से लाभ हुआ है, उनके अनुभव को भी रिकार्ड किया जा रहा है। यह कई रोगों में कारगर है।
वरिष्ठ आयुर्वेद रोग विशेषज्ञ डा. बिनोद जोशी कहते हैं कि कासनी लीवर, बवासीर, खांसी में कारगर है। इसका इस्तेमाल दूसरे दवाओं के बनाने में भी होता है।
मशरूम के इन प्रजातियों के शारीरिक फायदे
ढिंगरी- इसके जटिल कार्बोहाइड्रेट्स कैंसर रोधी क्षमा बढ़ाते हैं। मानसिक तनाव, गुर्दे की कमजोरी कम करते हैं। रोग प्रतिरोधी क्षमता पैदा होती है।
- शिताके- लेंटीनेट दवा बनती है, जो कि आंतर, पित्ताशय, यकृत, फेफड़ा, गर्भाशय, कैंसर जैसी बीमारी में फायदेमंद। कैलोस्ट्राल कम करने और एड्स रोधी क्षमता होती है।
-ऋषि- कोकासुनची दवा बनती है, जो कि हेपेटाइटिस बी, ब्रोंकाइटिस, बवासीर, टीवी, मधुमेह के उपचार में फायदेमंद साहिब होता है।
बवासीर के घरेलू उपचार
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