Sunday, November 9, 2014

आसन्न मृत्यु को भी टाल देता है ये महामंत्र - Mantra to avoid death

आसन्न मृत्यु को भी टाल देता है ये महामंत्र

शिव और शक्ति मिल कर ब्रह्माण्ड का निर्माण करते हैं। इस श्रृष्टि में कुछ भी एकल नहीं है। अच्छाई है तो बुराई है, प्रेम है तो घृणा भी है।

यदि एक सिरा है तो दूसरा सिरा भी होगा। एक बिंदु के भी दो सिरे होते हैं।

जिस वक्त सिर्फ एक होगा उसी वक्त मुक्ति हो जाएगी। क्योंकि कोई भी वस्तु अकेले नहीं होती है अर्थात दोनों के एक साथ मिलने पर ही मुक्ति संभव है।

ब्रह्माण्ड में दो ही वस्तुएं हैं, ऊर्जा और पदार्थ। हमारा शरीर पदार्थ से निर्मित है और आत्मा ऊर्जा है। बिना एक के दूसरा अपनी अभिव्यक्ति नहीं कर सकता।

दया, क्षमा, प्रेम आदि सारे गुण तो आत्मा रूपी दर्पण में ही प्रतिबिंबित होते हैं। शिव पदार्थ और शक्ति ऊर्जा का प्रतीक है। दुर्गा जी के नौ रूप हैं, जो किसी न किसी भाव का प्रतिनिधित्व करते हैं।

अब जरा आइंस्टीन का सूत्र देखिए जिसके आधार पर ऑटोहान ने परमाणु बम बना कर परमाणु के अन्दर छिपी अनंत ऊर्जा की एक झलक दिखाई, जो कितनी विध्वंसक थी सब जानते हैं।

मृत्युंजय शिव के स्वरूप भगवान शिव की पांच कलाएं उपनिषदों में वर्णित हैं, 1- आनंद 2- विज्ञान 3- मन 4- प्राण 5- वाक्।

शिव की आनंद नामक कला उनका महामृत्यंजय स्वरूप है। विज्ञान कला दक्षिणामूर्ति शिव, मन कला कामेश्वर, प्राण कला पशुपति शिव एवं वाक् कला भूतेशभावन शिव कहलाती है।

उपनिषदों की व्याख्या के आधार पर जीवन में आनंद प्राप्ति के निमित्त शिव के मृत्युंजय स्वरूप की आराधना आदिकाल से प्रचलित है।

महामृत्युंजय शिव षड्भुजाधारी हैं, जिनमें से चार भुजाओं में अमृत कलश रखते हैं, अर्थात् वे अमृत से स्नान करते हैं।

शिव अमृत का ही पान करते हैं एवं अपने भक्तों को भी अमृत पान कराते हुए अजर-अमर कर देते हैं। इनकी शक्ति भगवती अमृतेश्वरी हैं।

महामृत्युंजय मंत्र का स्वरूप और भाव ”ॐ त्र्यंबकम् यजामहे सुगंधिम् पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बंधनान्मृत्योमरुक्षीय मामृतात।।“

शिव के सूर्य, चंद्र एवं अग्नि के प्रतीक त्रिनेत्रों के कारण उन्हें ‘त्र्यंबक कहा गया है। त्र्यंबक शिव के प्रति यज्ञ आदि कर्मों से संबंध जोड़ते हुए स्वयं को समर्पित करने की प्रक्रिया ‘यजामहे’ है।

जीवनदायी तत्वों को अपना सुगंधमय स्वरूप देकर विकृति से रक्षा करने वाले शिव ‘सुगंधि’ पद में समाहित हैं। पोषण एवं लक्ष्मी की अभिवृद्धि करने वाले शिव ‘पुष्टिवर्धनम्’ हैं।

रोग एवं अकालमृत्यु रूपी बंधनों से मुक्ति प्रदान करने वाले मृत्यंजय ‘उर्वारुक मिव बंधनात’ पद में समाहित है। तीन प्रकार की मृत्यु से मुक्ति पाकर अमृतमय शिव से एकरूपता की याचना ‘मृत्योमरुक्षीय मामृतात’ पद में है।

महामृत्युंजय मंत्र के जाप की विधि में साधक नित्यकर्म के बाद, आचमन-प्राणायाम करें। माथे पर चंदन तिलक लगाकर, रुद्राक्ष की माला पहनें, इसके बाद ही जाप आरंभ करना चाहिए।

प्रयोग विधि में मृत्युंजय देवता के सम्मुख पवित्र आसन पर पूर्व दिशा की ओर मुख कर बैठें। सबसे पहले शरीर शुद्धि कर, संकल्प लें। उसके बाद विनियोग न्यास एवं ध्यान जप विधि के प्रमुख अंग हैं - ‘मृत्युंजय महादेवो त्राहिमाम् शरणामम्’।

“जन्म-मृत्यु जरारोगै: पीड़ितम् कर्मबंधनै:“ मंत्र के साथ जाप निवेदन करना चाहिए। शारीरिक एवं मानसिक रोगों से मुक्ति पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु एवं आकाश - इन पंच तत्वों से मनुष्य की प्रकृति का निरूपण होता है।

एवं किसी एक तत्व के कुपित हो जाने से रोग एवं मृत्यु की उत्पत्ति होती है। पृथ्वी तत्व के अधिपति शिव, जल तत्व के गणेश, अग्नि तत्व की दुर्गा, वायु तत्व के सूर्य एवं आकाश तत्व के अधिपति विष्णु माने गए हैं।

किसी भी तत्व के असंतुलित हो जाने की दशा में तत्वों से संबंधित देवता की उपासना से शीघ्र लाभ होता है। परंतु जब संपूर्ण पंच तत्वों का असंतुलन मानव शरीर में होता है, तो असाध्य रोगों की उत्पत्ति होती है, जिसके निवारणार्थ महामृत्युंजय मंत्र का प्रयोग अमोघ माना जाता है।

रजोगुण एवं तमोगुण से उत्पन्न समस्त मानसिक विकारों जैसे - क्रोध, काम, द्वेष, अवसाद आदि दोषों के शमन हेतु महामृत्युंजय मंत्र का नियमित जाप शीघ्र आरोग्य प्रदान करता है। अनिष्ट ग्रहों का निवारण, मारक एवं बाधक ग्रहों से संबंधित दोषों का निवारण महामृत्युंजय मंत्र की आराधना से संभव है।

मान्यता है कि बारह ज्योतिर्लिंगों के दर्शन मात्र से समस्त बारह राशियों से संबंधित शुभ फलों की प्राप्ति होती है। काल संबंधी गणनाएं ज्योतिष का आधार हैं तथा शिव स्वयं महाकाल हैं, अत: विपरीत कालखंड की गति महामृत्युंजय साधना द्वारा नियंत्रित की जा सकती है।

जन्म पत्रिका में कालसर्प दोष, चंद्र-राहु युति से जनित ग्रहण दोष, मारकेश एवं बाधकेश ग्रहों की दशाओं में, शनि के अनिष्टकारी गोचर की अवस्था में महामृत्युंजय का प्रयोग शीघ्र फलदायी है।

इसके अलावा विषघटी, विषकन्या, गंडमूल एवं नाड़ी दोष आदि अनेकानेक दोषों को निर्मूल करने की क्षमता इस मंत्र में है। राशि अनुसार मंत्र के लाभ इस प्रकार हैं: मेष - महामृत्युंजय जाप से भूमि-भवन संबंधी परेशानियों एवं कार्यों में लाभ, व्यापार में विस्तार। ।

वृषभ - उत्साह एवं ऊर्जा की प्राप्ति होगी। भाई-बहनों से पूर्ण सुख एवं सहयोग मिलता रहेगा। मिथुन - आर्थिक लाभ। स्वास्थ्य संबंधी बाधाओं एवं पीड़ाओं की निवृत्ति हेतु अचूक। पारिवारिक सुख।

कर्क - इस मंत्र का जाप करते रहें। जीवन का सर्वांगीण विकास होगा। सिंह - अनावश्यक प्रवृत्तियों पर अंकुश। आरामदायक नींद एवं पारिवारिक सुख की प्राप्ति। कन्या - धन-धान्य संबंधी लाभ। मनोकामनाओं की पूर्ति। सुख एवं ऐश्वर्य की प्राप्ति।

तुला - कार्य क्षेत्र में सफलताएं मिलेंगी। व्यापारिक अवरोध समाप्त होंगे। पदोन्नति हेतु विशेष लाभप्रद। वृश्चिक - भाग्योदय कारक है। आध्यात्मिक उन्नति की संभावनाएं बनेंगी। धनु - पैतृक संपत्ति की प्राप्ति।

दुर्घटनाओं एवं आकस्मिक आपदाओं से रक्षा। मकर - सुयोग्य जीवनसाथी की प्राप्ति। दांपत्य जीवन में मधुरता एवं व्यापारिक उन्नति के अवसर।

कुंभ - शत्रु एवं ऋण संबंधी सारे दोष दूर होंगे। प्रतियोगिताओं एवं वाद-विवाद में सफलताएं मिलेंगी। मीन - मानसिक स्थिरता। संतानोत्पत्ति। शिक्षा संबंधी बाधाओं का निवारण।

महामृत्युंजय मंत्र का जप करना परम फलदायी है, लेकिन इस मंत्र के जप में कुछ सावधानियां रखनी चाहिए, जिससे कि इसका संपूर्ण लाभ प्राप्त हो सके और किसी भी प्रकार के अनिष्ट की संभावना न रहे। अतः जप से पूर्व निम्न बातों का ध्यान जरूर रखें:

जो भी मंत्र जपना हो उसका जप उच्चारण की शुद्धता से करें। एक निश्चित संख्या में जप करें। पूर्व दिवस में जपे गए मंत्रों से, आगामी दिनों में कम मंत्रों का जप न करें। यदि चाहें तो अधिक जप सकते हैं।

मंत्र का उच्चारण होठों से बाहर नहीं आना चाहिए। यदि अभ्यास न हो तो धीमे स्वर में जप करें। जप काल में धूप-दीप जलते रहना चाहिए। रुद्राक्ष की माला पर ही जप करें। माला को गौमुखी में रखें।

जब तक जप की संख्या पूर्ण न हो, माला को गौमुखी से बाहर न निकालें। जप काल में शिवजी की प्रतिमा, तस्वीर, शिवलिंग या महामृत्युंजय यंत्र पास में रखना अनिवार्य है। महामृत्युंजय के सभी जप कुश के आसन के ऊपर बैठकर करें।

जप काल में दुग्ध मिले जल से शिवजी का अभिषेक करते रहें या शिवलिंग पर चढ़ाते रहें। महामृत्युंजय मंत्र के सभी प्रयोग पूर्व दिशा की तरफ मुख करके ही करें। जिस स्थान पर जपादि का शुभारंभ हो, वहीं पर आगामी दिनों में भी जप करना चाहिए।

जपकाल में ध्यान पूरी तरह मंत्र में ही रहना चाहिए, मन को इधर-उधर न भटकाएं। जपकाल में आलस्य व उबासी को न आने दें। मिथ्या बातें न करें। जप काल में स्त्री संसर्ग न करें। जपकाल में मांसाहार त्याग दें।

Mantra to avoid death

mantra to avoid divorce

mantra to avoid fear

mantra to avoid obstacles

death mantra hindu

the dead mantra

No comments:

Post a Comment

Effective Home Remedies for Migraine Relief

Introduction: Migraine headaches are characterized by intense, throbbing pain, often accompanied by nausea, sensitivity to light and sound, ...